Jaun Elia (Urdu: جون ایلیاء, 14 December 1931 – 8 November 2002) was a Pakistani Urdu poet, philosopher, biographer, and scholar. He was the brother of Rais Amrohvi and Syed Muhammad Taqi, who were journalists and psychoanalysts. He was fluent in Arabic, English, Persian, Sanskrit and Hebrew.
Occupation Urdu Poet, scholar philosopher
Nationality Pakistani
Ethnicity Muhajir
Genre Ghazal poetry
Notable works Shayad, Yaani, Lekin, Gummaan, Goya, Farnood
Occupation Urdu Poet, scholar philosopher
Nationality Pakistani
Ethnicity Muhajir
Genre Ghazal poetry
Notable works Shayad, Yaani, Lekin, Gummaan, Goya, Farnood
इक ही शख़्स था, जहान में क्या
ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या
आ रहा है मेरे, गुमान में क्या
अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं
यही होता है, खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में
आबले[1] पड़ गये, ज़बान में क्या
मेरी हर बात, बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये, पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या
शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या
यूं जो तकता है, आसमान को तू
कोई रहता है, आसमान में क्या
ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था, जहान में क्या
आ रहा है मेरे, गुमान में क्या
अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं
यही होता है, खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में
आबले[1] पड़ गये, ज़बान में क्या
मेरी हर बात, बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये, पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या
शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या
यूं जो तकता है, आसमान को तू
कोई रहता है, आसमान में क्या
ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था, जहान में क्या
शब्दार्थ:
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