Monday, August 15, 2016

सीने में जलन / शहरयार


सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है 
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है 


दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे 
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है 


तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है 


हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है


क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में 
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है 

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